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|रचनाकार=शिवदीन राम जोशी
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अनुराग में प्रेम है त्याग में प्रेम है,
भाग्य में प्रेम है ये ही तो नेम है।
ग्यान ही प्रेम है ध्यान ही प्रेम है,
राम ही प्रेम है प्रेम ही प्रेम है।
शिवदीन है प्रेम कहो मन में,
जन में तन में कुशलानंद क्षेम है।
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