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साँचा:KKPoemOfTheWeek

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ख़ानाबदोश औरतधार
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रचनाकार: [[किरण अग्रवालअरुण कमल]]
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ख़ानाबदोश औरतकौन बचा है जिसके आगेअपनी काली, गहरी पलकों सेताकती है क्षितिज के उस पारइन हाथों को नहीं पसारा
सपना जिसकी आँखों यह अनाज जो बदल रक्त में डूबकरख़ानाबदोश हो जाता टहल रहा हैतन के कोने-कोनेउसकी ही तरहयह कमीज़ जो ढाल बनी हैसमयबारिश सरदी लू मेंजो लम्बेसब उधार का, माँगा चाहानमक-लम्बे डग भरतातेल, हींग-हल्दी तकनापता है ब्रह्मांड कोसब कर्जे कायह शरीर भी उनका बंधक
समयजिसकी नाक के नथुनों सेनिकलता रहता अपना क्या है धुआँजिसके पाँवों की थाप सेथर्राती है धरती दिन जिसके लौंग-कोट के बटन इस जीवन में उलझकरभूल जाता है अक्सर रास्ताऔरत उसके दिल की धडकन हैरूक जाएसब तो रूक जाएगा समयलिया उधारसारा लोहा उन लोगों काऔर इसलिए टिककर नहीं ठहरती कहींचलती रहती है निरन्तर ख़ानाबदोश औरतअपने काफ़िले के साथपडाव-दर-पडाव बेटी — पत्नी — माँ.... वह खोदती है कोयलावह चीरती है लकडीवह काटती है पहाडवह थापती है गोयठावह बनाती है रोटीवह बनाती है घरलेकिन उसका कोई घर नहीं होता ख़ानाबदोश औरतआसमान की ओर देखती है तो कल्पना चावला बनती हैधरती की ओर ताके तो मदर टेरेसाहुँकार भरती है तो होती है वह झाँसी की रानीपैरों को झनकाए तो ईजाडोरा ख़ानाबदोश औरतविज्ञान को खगालती है तोजनमती है मैडम क्यूरीक़लम हाथ में लेती है तो महाश्वेताप्रेम में होती है वह क्लियोपैट्रा और उर्वशीभक्ति में अनुसुइय्या और मीरां वह जन्म देती है पुरूष कोपुरूष जो उसका भाग्य-विधाता बन बैठता हैपुरूष जो उसको अपने इशारे पर हाँकता हैफिर भी बिना हिम्मत हारे बढ़ती रहती है आगेख़ानाबदोश औरत क्योंकि वह समय के दिल की धडकन हैअगर वह रूक जाएतो रूक जाएगी सृष्टि अपनी केवल धार ।
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