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ग़ज़ल
धूप के पेड़ पर कैसे शबनम उगे,बस यही सोच कर सब परेशान हैंमैं ख़ुद पे एक अजब वार करने वाला था मेरे आँगन में क्या आज मोती झरे,लोग उलझन में हैं और हैरान हैंउनाहगार हूँ इंकार करने वाला था
बचा लिया मुझे मेरे ज़मीर ने वर्ना
मैं अपनी मौत का दीदार करने वाला था
तुमसे नज़रें मिलीं,दिल तुम्हारा हुआ,धड़कनें छिन गईं तुम बिछड़ भी गएअदीब हूँ मैं मगर भूल ही गया क्या हूँआँखें पथरा गईं,जिस्म मिट्टी हुआ,अब तो बुत की तरह हम भी बेजान हैंमैं अपने लहजे को तलवार करने वाला था
मेरे तबीब मुझे मौत क्यूँ नहीं आती
सवाल अजीब ही बीमार करनी वाला था
डूब जाओगे तुम,डूब जाउँगा मैं और उबरने न देगी नदी रेत कीबच-बचा के नज़र फेर कर चला आया तुम भी वाकि़फ़ नहीं मैं भी हूँ बेख़बर,प्यार की नाव में कितने तूफ़ान हैं  डूब जाता ये मुझे वो दिल, टूट जाता ये दिल,शुक्र है ऐसा होने से पहले ही खु़ददिल को समझा लिया और तसल्ली ये दी अश्क आँखों में कुछ पल के मेहमान हैं  ज़ख़्म हमको मिले,दर्द हमको मिले और ये रुस्वाइयाँ जो मिलीं सो अलगबोझ दिल पर ज़्यादा न अब डालिए आपकी और भी कितने एहसान हैं  *******गिरिफ़्तार करने वाला था