भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
|संग्रह=
}}
<poem> {{KKCatKavita}}आज सड़कों पर लिखे हैं सैकड़ों नारे न देख,<br>पर अंधेरा देख तू आकाश के तारे न देख।<br><br>
एक दरिया है यहां पर दूर तक फैला हुआ,<br>आज अपने बाज़ुओं को देख पतवारें न देख।<br><br>
अब यकीनन ठोस है धरती हकीकत की तरह,<br>यह हक़ीक़त देख लेकिन खौफ़ के मारे न देख।<br><br>
वे सहारे भी नहीं अब जंग लड़नी है तुझे,<br>कट चुके जो हाथ उन हाथों में तलवारें न देख।<br><br>
ये धुंधलका है नज़र का तू महज़ मायूस है,<br>रोजनों को देख दीवारों में दीवारें न देख।<br><br>
राख कितनी राख है, चारों तरफ बिखरी हुई, <br>राख में चिनगारियां ही देख अंगारे न देख।<br><br>