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|रचनाकार=वीरेन्द्र खरे 'अकेला'
|अंगारों पर शबनम / वीरेन्द्र खरे 'अकेला'
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<poem>
छोटी-छोटी बात में ना दिल दुखी करते रहो
यार क़िश्तों में न ऐसे ख़ुदकुशी करते रहो

इश्तहारों का ज़माना है रखो ये भी ख़याल
कुछ न कर पाओ भले बातें बड़ी करते रहो

देखकर तुमको दुखी दुनिया उड़ाएगी हँसी
दर्द है बेशक़ मगर ज़ाहिर ख़ुशी करते रहो

तुम ही बोलो फ़र्क़ अंधों को पड़ेगा कौन सा
तीरगी क़ायम रहे या रोशनी करते रहो

कौन सा इंसाँ जहाँ में है ख़ताओं से बरी
इस तरह रूठो न हमसे बात भी करते रहो

तुमको मंज़िल का पता देगी पसीने की महक
धूप में ये गोरी चमड़ी साँवली करते रहो

मुश्किलें पग-पग पे रोकेंगी तुम्हारा रास्ता
ऐ ‘अकेला’ हौसलों से दोस्ती करते रहो
</poem>
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