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Kavita Kosh से
सूरत डोर लागी रहे, तार टूट नाहिं जाय ॥ 57 ॥ <BR/><BR/>
साधु ऐसा चहिए चाहिए,जैसा सूप सुभाय । <BR/>
सार-सार को गहि रहे, थोथ देइ उड़ाय ॥ 58 ॥ <BR/><BR/>
मीठा कहा अंगार में, जाहि चकोर चबाय ॥ 59 ॥ <BR/><BR/>
तुम दाता दु:ख भंजना, मेरी करो सम्हार ॥ 63 ॥ <BR/><BR/>
प्रेम न बड़ी बाड़ी ऊपजै, प्रेम न हाट बिकाय । <BR/>राजा-प्रजा जोहि परजा जेहि रुचें, शीश देई ले जाय ॥ 64 ॥ <BR/><BR/>
प्रेम प्याला जो पिये, शीश दक्षिणा देय । <BR/>