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Kavita Kosh से
इधर उधर की न बातों में तुम घुमाओ मुझे
मैं सब समझता हूँ पागल नहीं बनाओ मुझे
बिछुड़ के जीने का बस एक रास्ता ये है
मैं भूल जाऊँ तुम्हें तुम भी भूल जाओ मुझे
तुम्हारे पास वो सिक्के नहीं जो बिक जाऊँ
मेरे ख़ुलूस की क़ीमत नहीं बताओ मुझे
भटक रहा हूँ अँधेरों की भीड़ में कब से
दिया दिखाओ कि अब रौशनी में लाओ मुझे
चराग़ हूँ मैं , ज़रूरत है रौशनी की तुम्हें
बुझा दिया था तुम्ही ने तुम्ही जलाओ मुझे