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<poem>
‘रस्किन’ और ‘कार्लाइल’ ने,
‘स्मिथ’ को ही ध्क्किारा धिक्कारा है।
‘रोटी-पानी’ की धरा क्या,
मानव जीवन की धरा है ॥13॥
सार्थक होता शास्त्र नहीं है।
भौतिकता का संवर्धन ही,
सुखमय जीवन मात्रा मात्र नहीं है ॥14॥
‘विलियम मारिस’और ‘बर्क’ ने,
निंदनीय था इसे पुकारा।
जीवन में क्या ‘धन’ ही केवल,
होता है बस मात्रा मात्र सहारा ॥15॥
धीरे-धीरे अर्थशास्त्र का,
‘मार्शल’ को सर्वोत्तम पाया ॥16॥
‘मार्शल’ ने पिफर फिर अर्थशास्त्र को,
सीमाओं से मुक्त कर दिया।
वैज्ञानिक नव-पृष्ठभूमि पर,
इसका दृढ़ आधर आधार रख दिया ॥17॥
‘मार्शल’ ने तो ‘धन’ से बढ़कर,
‘भौतिक हित’ पर मनन किया है।
जीवन के साधरण साधारण क्रम में,
मानव का अध्ययन किया है ॥18॥
भेद ‘अनार्थिक’ और ‘आर्थिक’,
बतलाया सब क्रियाओं में।
अर्थशास्त्र का क्षेत्रा क्षेत्र दिखाया,
सभी ‘आर्थिक’ क्रियाओं में ॥22॥
‘कैनन’, ‘पीगू’, बेवरिज़ भी,
‘मार्शल’ की शृंखला में आते।
सुधरा हुआ रूप दरसाते ॥24॥