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|रचनाकार=मंगलेश डबराल
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<poem>
जल्दी से वह पहुँचना चाहती थी
उस जगह जहाँ एक आदमी
उसके पानी में नहाने जा रहा था
एक नाव
लोगों का इन्तज़ार कर रही थी
और पक्षियों की कतार
आ रही थी पानी की खोज में
जल्दी से वह पहुँचना चाहती थी<br>बचपन की उस जगह जहां एक आदमी<br>उसके पानी नदी में नहाने जा रहा था<br>एक नाव<br>हम अपने चेहरे देखते थे हिलते हुएलोगों का इंतज़ार कर रही थी<br>उसके किनारे थे हमारे घरहमेशा उफ़नतीअपने तटों और पक्षियों की कतार<br>पत्थरों को प्यार करतीआ रही उस नदी से शुरू होते थे दिनउसकी आवाज़तमाम खिड़कियों पर सुनाई देती थी पानी की खोज में<br><br>लहरें दरवाज़ों को थपथपाती थींबुलाती हुईं लगातार
बचपन की उस हमे याद हैयहाँ थी वह नदी इसी रेत में<br>हम अपने जहाँ हमारे चेहरे देखते थे हिलते हुए<br>उसके किनारे थे हमारे घर<br>हमेशा उफनती<br>अपने तटों और पत्थरों को प्यार यहाँ थी वह नाव इंतज़ार करती<br>उस नदी से शुरू होते थे दिन<br>उसकी आवाज़<br>तमाम खिड़कियों पर सुनायी देती थी<br>लहरें दरवाज़ों को थपथपाती थीं<br>बुलाती हुईं लगातार<br><br>हुई
हमे याद है<br>यहाँ थी वह नदी इसी रेत में<br>जहाँ हमारे चेहरे हिलते थे<br>यहाँ थी वह नाव इंतज़ार करती हुई<br><br> अब वहाँ कुछ नहीं है<br>सिर्फ सिर्फ़ रात को जब लोग नींद में होते हैं<br>कभी-कभी एक आवाज़ सुनायी सुनाई देती है रेत से<br/poem>
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