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|रचनाकार=कविता वाचक्नवी
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कभी पूरी नींद तक भी
बंद मुँह भी
कैसे मुस्कुरा लेते हैं इतना,
 
 
और, आप !
आँचलों में सिमटे
नंगई सँवारते हैं।
 
 
टूटे पुलों के छोरों पर
पानी लगातार तुम्हारे डूबने की
साजिशों में लगा है,
 
अंधेरे ने छीन ली है भले
आँखों की देख
 
 
पर मेरे पास
अभी भी बचा है
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