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Kavita Kosh से
सागर से रखती नहीं, सीपी कोई आस।
एक स्वाती की बूँद से, बुझ जाती है प्यास।।
मन से जो भी भेंट दे, उसको करो क़बूल |
काँटा मिले बबूल का, या गूलर का फूल ||
जाने किसका रास्ता, देख रही है झील |
दरवाज़े पर टाँग कर, चंदा की कंडील ||
रातों को दिन कह रहा, दिन को कहता रात |
जितना ऊँचा आदमी, उतनी नींची बात ||
या ये उसकी सौत है, या वो इसकी सौत |
इस करवट है ज़िन्दगी, उस करवट है मौत ||
सूरज रहते 'क़म्बरी', करलो पुरे काम |
वरना थोड़ी देर में, हो जायेगी शाम ||
तुम तो घर आये नहीं, क्यों आई बरसात |
बादल बरसे दो घड़ी, आँखें सारी रात ||
छाये बादल देखकर, खुश तो हुये किसान |
लेकिन बरसे इस क़दर, डूबे खेत मकान ||
छूट गया फुटपाथ भी, उस पर है बरसात |
घर का मुखिया सोचता, कहाँ बितायें रात ||
कोई कजरी गा रहा, कोई गाये फाग |
अपनी-अपनी ढपलियाँ, अपना-अपना राग ||
पहले आप बुझाइये, अपने मन की आग |
फिर बस्ती में गाइये, मेघ मल्हारी राग ||
सूरज बोला चाँद से, कभी किया है ग़ौर |
तेरा जलना और है, मेरा जलना और ||
जब तक अच्छा भाग्य है, ढके हुये है पाप |
भेद खुला हो जायेंगे, पल में नंगे आप ||
बहुदा छोटी वस्तु भी, संकट का हल होय |
डूबन हारे के लिये, तिनका सम्बल होय ||