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|रचनाकार=कुँअर बेचैन
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{{KKCatKavita}} <poem>
नींदें तो
 
रातों से लंबी
 
दिन से लंबा ख़ालीपन
 
अब क्या होगा मेरे मन?
 
मन की मीन
 
नयन की नौका
 
जब भी चाहे
 
बीती-अनबीती बातों में
 
डूबे-उतराए
 
निष्ठुर तट ने
 
तोड़ दिए हैं
 
बर्तुल लहरों के कंगन।
 
अब क्या होगा मेरे मन?
 
जितनी साँसें
 
रहन रखी थीं
 
भोले जीवन ने
 
एक-एक कर
 
छीनीं सारी
 
अश्रु-महाजन ने
 
लुटा हाट में
 
इस दुनिया की,
 
प्राणों का मधुमय कंचन।
 
अब क्या होगा मेरे मन।।
'''''-- यह कविता [[Dr.Bhawna Kunwar]] द्वारा कविता कोश में डाली गयी है।<br><br>'''''
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