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जलाओ दिये पर रहे ध्यान इतना
अँधेरा धरा पर कहीं रह न जाए
निशा की गली में तिमिर राह भूले,
खुले मुक्ति का वह किरण -द्वार जगमग, उषा जा न पायेपाए, निशा आ ना पाये |पाए।
जलाओ दिये पर रहे ध्यान इतना
अँधेरा धरा पर कहीं रह न जाए
कहीं भी किसी द्वार पर है उदासी,
मनुजता नहीं पूर्ण तब तक बनेगी,
कि जब तक लहू के लिए भूमि प्यासी,
चलेगा सदा नाश का खेल यों ही,
भले ही दिवाली यहाँ रोज आए।