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यह लघु सरिता का बहता जल
गिर-गिर, गिरि की चट्टानों पर,
कंकड़-कंकड़ पैदल चलकर,
हिम के पत्थर वो पिघल पिघल,
बन गये गए धरा का वारि विमल,
सुख पाता जिससे पथिक विकलच
पी-पी कर अंजलि भर मृदुजल,