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New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अनिल जनविजय |संग्रह=माँ, बापू कब आएंगे }} रात भर चुप-चुप ...
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{{KKRachna
|रचनाकार=अनिल जनविजय
|संग्रह=माँ, बापू कब आएंगे
}}
रात भर चुप-चुप
रोती रही रात
दिन भर टिप-टिप
सिसकता रहा दिन
बिजली के तार
पेड़-पौधे और मकान
सब के सब फूट-फूट कर रोते रहे
नगर भर को आंसुओं में भिगोते रहे
रोते रहे, डुबोते रहे
(रचनाकाल : 1982)
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|रचनाकार=अनिल जनविजय
|संग्रह=माँ, बापू कब आएंगे
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रात भर चुप-चुप
रोती रही रात
दिन भर टिप-टिप
सिसकता रहा दिन
बिजली के तार
पेड़-पौधे और मकान
सब के सब फूट-फूट कर रोते रहे
नगर भर को आंसुओं में भिगोते रहे
रोते रहे, डुबोते रहे
(रचनाकाल : 1982)
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