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Kavita Kosh से
पी जा हर अपमान और कुछ चारा भी तो नहीं !
तूने स्वाभीमान स्वाभिमान से जीना चाहा यही ग़लत था
कहाँ पक्ष में तेरे किसी समझ वाले का मत था
केवल तेरे ही अधरों पर कड़वा स्वाद नहीं है