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{{KKRachna
|रचनाकार=गजादान चारण ‘शक्तिसुत’
|संग्रह=
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[[Category:मूल राजस्थानी भाषा]]
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<poem>बदळो! बदळो!!
हिवड़ै में वपरावो बदळाव री हूंस
दुनिया नैं देखो
देखादेखी ई सही
बदळो तो सरी।
सागो देख’र सासरो साजण रो
इण सूं आछो टैम
आयो, न आवण रो।
बदळाव में सार ई सार है
क्यूंकै अबार रै बदळाव में
फकत नेम तोड़ण री दरकार है।
आपां सगळा जाणां कै
अबखायां रो कारण ई
ऐ अनुशासन, नेम अर काण-कायदा है।
जगां-जगां रोप दिया खंूटा
थरप दिया थान।
मिनख तो मिनख
पसुवां तकात री
खोसली सुतंतरता।
अनुशासन रै नांव माथै
बांध दी आखी दुनियां नैं
न्यारै-न्यारै बंधणां में
कस दिया कसणा कसौट्यां रै ओळावै।
सींगवाळां रै सींगां में जेवड़ी
गतिवाळां री चाल चुकावण सारू
गळै में लटका दिया डींगरा
केइयां रैं घाल दिया गळांवडा
जकां सूं खतावळ करतां ई फूटै गोडा
भळै ई जे कोई हांपळ करै तो
दावणा, लंगर अर पेंखड़ा त्यार।
रोक दिया सगळां रा लाता-लडिय़ा
नाक तक में घाल दी नकेलां
और तो और सबदां तकात री हरली सुतंतरता
वांरी ई कराय दी आपस में सगायां (वयण-सगाई)
जठै बंधै बठै ई छूटै
एक-दूसरै री चाल-चलगत
जाणण-समझण में ई बीतज्या बरसां रा बरस
अनुप्रासां री आसा में सासां निकळै
दोसां रै परित्याग अर
गुणां रै अनुराग री चाहत मांय
छूट ज्यावै भावां री डोर
यमक री चमक अर
श्लेष रै कळेस में भ्रांति दांई लागतो
सळवळियो सो संदेह
साच्याणी देह धारण कर’र पड़ जावै लारै।
इयांकलै टैम में
आगत री पदचाप नैं
आगूंच ओळखणियां रचनाकारां!
सिरजणहारां!!
हियाळी कांगसी हियै में छोड’र
बुद्धि रो हेलो सांभळो,
बगत रै बायरियै रै परस नैं पिछाणो!
नेम सूं बंध्योड़ा
निबळा लोगड़ा पाळै
प्रीत जियांकला पांगळा पंपाळ,
खपै निभावण नैं सगायां री सरतां।</poem>
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