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Kavita Kosh से
पेड़ के फलदार बनने की कहानी रस भरी है
शाख़ लेकिन मौसमों के हर सितम को झेलती है
सैकड़ों बातें इधर हैं उस तरफ बस खामुशी है
कैसे सपने देखती हूँ मैं ये क्या दीवानगी है
गर तुम्हारी बात पर हँसता है अब तक ये ज़माना