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Kavita Kosh से
तड़ित, तम का विकल मन है,
भीति क्या नभ है व्यथा का
स्वर-प्रकम्पित कर दिशायें,
मीड़, सब भू की शिरायें,
घर न खोये, लघु विहग भी,
स्निग्ध लौ की तूलिका से
हो लिये सब साथ अपने,