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Kavita Kosh से
सबका लिया सहारा
पर नर व्याघ्र सुयोधन तुमसे
कहो, कहाँ , कब हारा ?
क्षमाशील हो रिपु-समक्ष
जिसके पास गरल हो
उसको क्या जो दंतहीन
विषरहित, विनीत, सरल हो ।हो।
तीन दिवस तक पंथ मांगते
रघुपति सिन्धु किनारे,
बैठे पढ़ते रहे छन्द
अनुनय के प्यारे-प्यारे ।प्यारे।
उत्तर में जब एक नाद भी
उठा नहीं सागर से
उठी अधीर धधक पौरुष की
आग राम के शर से ।से।
सिन्धु देह धर त्राहि-त्राहि
बँधा मूढ़ बन्धन में।
सच पूछो , तो शर में ही
बसती है दीप्ति विनय की
सन्धि-वचन संपूज्य उसी का
जिसमें शक्ति विजय की ।की।
सहनशीलता, क्षमा, दया को