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इतिहास / अनिता भारती

No change in size, 09:26, 13 जुलाई 2013
<poem>
समय की धूल में दबे
हजारों कदमों की परत हटाती हूंहूँ
तो उसके अनोखेपन
त्याग और बलिदान पर
मुग्ध हो जाती हूंहूँ
पर
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