भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
कृपया पुनः इससे छेड़छाड़ न की जाए। मैंने स्वयं अपनी कविता को फायनल किया है।
<poem>
कभी पूरी नींद तक भी
न सोने वाली औरतोंऔरतो!
मेरे पास आओ,
दर्पण है मेरे पास
के नीचे
लाल से नीले
उँगलियों के निशान
चुन्नियों में लिपटे
टूटे पुलों के छोरों पर
तूफान पार करने की
उम्मीद लगाई औरतों औरतो !
जमीन धसक रही है
पहाड़ दरक गए हैं
अंधेरे ने छीन ली है भले
आँखों की देख ,
पर मेरे पास
अभी भी बचा है