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|रचनाकार=शिवमंगल सिंह सुमन
|संग्रह=
}}{{Template:KKAnthologyDiwali}}{{KKCatKavita}}<poem>मृत्तिका का दीप तब तक जलेगा अनिमेष<br>एक भी कण स्नेह का जब तक रहेगा शेष ।<br><br>शेष।
हाय जी भर देख लेने दो मुझे<br>मत आँख मीचो<br>और उकसाते रहो बाती<br>न अपने हाथ खींचो<br>प्रात जीवन का दिखा दो<br>फिर मुझे चाहे बुझा दो<br>यों अंधेरे में न छीनो-<br>हाय जीवन-ज्योति के कुछ क्षीण कण अवशेष ।<br><br>अवशेष।
तोड़ते हो क्यों भला<br>जर्जर रूई का जीर्ण धागा<br>भूल कर भी तो कभी<br>मैंने न कुछ वरदान माँगा<br>स्नेह की बूँदें चुवाओ<br>जी करे जितना जलाओ<br>हाथ उर पर धर बताओ<br>क्या मिलेगा देख मेरा धूम्र कालिख वेश ।<br><br>वेश।
शांति, शीतलता, अपरिचित<br>जलन में ही जन्म पाया<br>स्नेह आँचल के सहारे<br>ही तुम्हारे द्वार आया<br>और फिर भी मूक हो तुम<br>यदि यही तो फूँक दो तुम<br>फिर किसे निर्वाण का भय<br>जब अमर ही हो चुकेगा जलन का संदेश ।<br>संदेश।<br/poem>
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