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|रचनाकार=भूषण
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ता दिन अखिल खलभलै खल खलक में,
 जा दिन सिवाजी गाजी नेक करखत हैं .  सुनत नगारन अगार तजि अरिन की , दागरन भाजत बार परखत हैं .  
छूटे बार बार छूटे बारन ते लाल ,
 
देखि भूषण सुकवि बरनत हरखत हैं .
 
 
क्यों न उत्पात होहिं बैरिन के झुण्डन में,
 
करे घन उमरि अंगारे बरखत हैं .
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