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| रचनाकार= इरशाद खान सिकंदर
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तुमने मुझको समझा क्या
मै हूँ ऐसा वैसा क्या

बस इतना ही जानू मैं
टूट गया जो रिश्ता क्या

अच्छी-खासी सूरत है
दिल भी होगा अच्छा क्या

आँखों में अंगारे थे
होटों पर भी कुछ था क्या

बरसों बाद मिले हो तुम
देखो मै हूँ जिंदा क्या

हाथों में कुरआन लिए
जो बोला वो सच था क्या

पेड़ है क्यों इतना गुमसुम
टूट गया फिर पत्ता क्या
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