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Kavita Kosh से
तन-मन दुखने लगा कौन अब
आशाओं का बोझ सम्हाले
सतरंगे सपनों से अब तो अपनी
अपनी प्रीत गयी
ज़िन्दगी यूँ ही बीत गयी
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