भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
}}
{{KKCatGhazal}}
{{KKVID|v=H_6aSbfOKCM}}
<poem>
 
पूछते हो तो सुनो, कैसे बसर होती है
रात ख़ैरात की, सदक़े की सहर होती है
काम आते हैं न आ सकते हैं बे-जाँ अल्फ़ाज़
तर्जमा दर्द की ख़ामोश नज़र होती है.
 
...
...
...
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader, प्रबंधक
35,090
edits