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लौट चल मन / मानोशी

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{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=मानोशी|अनुवादक=|संग्रह=}}{{KKCatGeet}}<poem>लौट चल मन,
द्विधा छोड़ सब
लौट चल अब |
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