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भगवान सिंह 'भास्कर'

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{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=भगवान सिंह 'भास्कर'|अनुवादक=|संग्रह==ग़ज़ल====}}{{KKCatGhazal}}{{KKCatBhojpuriRachna}}<poem>* [[जान हमरा पर आपन निसार का करीबश में दोसरा के रहिके करार का करी हियरा हहरत रही, मनवा डहकत रही,जेके परदेश पिय ऊ सिंगार का करी तरसे बदरा नियर ई नयन रात-दिन,लाख अइबे करी त सुखार का करी जेकरा दिल में लागल आग बिरहा के बाओके पावस के बरखा बहार का करी पाती पढ़-पढ़के छाती जरे रात-दिनरोज ढ़रकत नयनवा के धार का करी जवन सोना रहे सगरो माटी भइलकेतनो गढ़वइब नौलखा हार का करी हम त मर गइलीं बस तोहरा मुसकान परतीर-तलवार-भाला-कटार का करी नाव मँझधार में फंस गइल ‘भास्कर’जे सहारा ना देब, त पार का करी</poem>भगवान सिंह 'भास्कर']]
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