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हे राम ! / रामकुमार कृषक

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<poem>
तुम्हारे नाम की हो रही है लूट
 
::हे राम !
 
तुम्हारे नाम को जप रहा है झूठ
 
::हे राम !
 
तुम्हारे नाम से भर रहे हैं कुछ पेट
 
::हे राम !
 
तुम्हारे नाम पर ठग रहे हैं सेठ
 
::हे राम !
 
तुम्हारे नाम पर सजे हैं बाज़ार
 
::हे राम !
 
तुम्हारे नाम पर डाकू भी संत हुए
 
::हे राम !
 
तुम्हारे नाम की महिमा अनंत है
 
::हे राम !
</poem>
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