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|संग्रह=नीलाम्बरा / महादेवी वर्मा
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यह संध्या फूली सजीली ! <br>
मुरझाया वह कंज बना जो मोती का दोना,<br>
पाया जिसने प्रात उसी को है अब कुछ खोना; <br><br>
आज सुनहली रेणु मली सस्मित गोधूली ने; रजनीगंधा आँज रही है नयनों में सोना !<br>
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