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केइ वार / अर्जुनदेव चारण

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|संग्रह=
}}‎
{{KKCatRajasthaniRachna}}{{KKCatKavita‎}}<poem>म्हे म्हारो नांव भूल जावूं,
भींत माथै खींचदूं कोरी लींगटियां,
भींत सूं म्हारो आंतरो
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