भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>थारै मिंदरियै पूरीजतौ
संख
म्हारै घर-आंगणियै बाजतौ
कांसी-थाळ ।थाळ।
थारै अर
म्हारै
आपै रा
आपां सूं ई तौ है
गूंजतौ आखै
आभै
क्यूं म्हारा देव ?
</poem>