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बै कांईं चावै / रामस्वरूप किसान

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|संग्रह=आ बैठ बात करां / रामस्वरूप किसान
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<Poem>
 
म्हैं
बां री मण्डळी में बोंलू
थे स्याणा हो
बै कांई चावै ?
 
</Poem>
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