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चाव /हेमन्त गुप्ता ‘पंकज’

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न्हं जाणै
खुद के तांई व्यक्त करबो
मनख होबा के लेखै
आपणी निजी आजादी
कतणी महताऊ होवै
या बी कोनी जाणै वा
कै ईं मनख बिरादरी में
ऊं को कांई मर्तबो छै
मांडबो-पढबो
न्हं जाणै वा आपणो नांव बी
कोई न्हं जाणै वा।

ऊं नैं
काट दी छै
आपणी आखी जिनगाणी
घर का चूल्हा-चौका
बुहारा-पोंछा करबा में
पण
वा चावै छै
आपणी बिटिया नैं
पढाबो-लिखाबो
जी सूं वा
घर सूं बारै बी
कर सकै छै आपणो नांव
निखार सकै छै
आपणां व्यक्तित्व नैं
जाण सकै
आपणी आजादी
अर आपणां होबा का मतलब
बणा सकै
समाज में
आपणी इाह
आपणी पछाण
ऊभी हो सकै
आपणा पावां पे
ईं बापड़ी मायड़ जात नैं
अपमानां का घूंटड़ा पुहाबा हाळी
मरद जात के साम्हीं
खम ठोक’र।</poem>
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