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हेत / गौरीशंकर प्रजापत

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[[Category:मूल राजस्थानी भाषा]]
{{KKCatKavita‎}}<poem>जमानो बंध्योड़ो है-
जात अर धरम मांय
मिनख-मिनख बिचाळै
ऐ डीगी-डीगी भींतां ई भींतां।
आं चमकता कंगूरा नैं
ओळखतो कुण
किणनैं दिखावता
लोक देखापै री आ चमक
जे हेत मांय नीं रळती नींव...

हेत नैं नीं पूग सकै
आपां री सींव
निवण हेत नैं....
निवण रेत नैं....
</poem>
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