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सांकळ / मोनिका गौड़

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<poem>सांकळां तो सांकळां ई हुवै
नांव कांई भी धरो
चायै टीको-रखड़ी करो
मंगळसूत, बंगड़ी धरो
पाजेब कै बिछिया
पण
सांकळ रो काम
फगत
बंधण घालणो ई हुवै
चायै लोहै सूं
चायै सोनै सूं।</poem>
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