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{{KKRachna
|रचनाकार=महेन्द्र मिश्र
|अनुवादक=
|संग्रह=प्रेम व श्रृंगार रस की रचनाएँ / महेन्द्र मिश्र }}
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<poem> मोरा राम दुनू भइया से बनवाँ गइले ना/मोरा
अवध नगरिया के निपटे बिसरलें से सपनवाँ भइलें ना।
मोरा राम दुनो भइया से बनवाँ गइलें ना।
भोरहीं के भूखे होइहें चले पग दूखे होइहे सूखे होइहें ना। मोरा
सूरूज के किरन लागे लाल कुंभिलाए होइहें थाके होइहें ना। मोरा
सोए होइहें छवाना बेबि छवाना दुनू भइया से जागे होइहें ना। मोरा
कहत महेन्दर रोवे माता कोशिल्या से कब दू अइहें ना मोरा।
</poem>
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<poem> मोरा राम दुनू भइया से बनवाँ गइले ना/मोरा
अवध नगरिया के निपटे बिसरलें से सपनवाँ भइलें ना।
मोरा राम दुनो भइया से बनवाँ गइलें ना।
भोरहीं के भूखे होइहें चले पग दूखे होइहे सूखे होइहें ना। मोरा
सूरूज के किरन लागे लाल कुंभिलाए होइहें थाके होइहें ना। मोरा
सोए होइहें छवाना बेबि छवाना दुनू भइया से जागे होइहें ना। मोरा
कहत महेन्दर रोवे माता कोशिल्या से कब दू अइहें ना मोरा।
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