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{{KKRachna
|रचनाकार=महेन्द्र मिश्र
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatGhazal}}
{{KKCatBhojpuriRachna}}
<poem>यार मिल जावो गले से अब तो फागुन आ गया।
आम टेसू फूल गया जोबन का अर्मा छा गया।
दर बदर-घर-घर में होली रंग केसर कुमकुमा,
चल रही पिंचकारियाँ मुख पर गुलाली छा गया।
ढोल डफ कर ताल बीना बज रही है तालियाँ
गालियाँ देते हैं लाखें सभी हया उड़ता गया।
शोर पपिहा की मची है कोकिलों की धूम है-
ए महेन्दर भाग जागे चांद भी उलझा गया।
</poem>
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<poem>यार मिल जावो गले से अब तो फागुन आ गया।
आम टेसू फूल गया जोबन का अर्मा छा गया।
दर बदर-घर-घर में होली रंग केसर कुमकुमा,
चल रही पिंचकारियाँ मुख पर गुलाली छा गया।
ढोल डफ कर ताल बीना बज रही है तालियाँ
गालियाँ देते हैं लाखें सभी हया उड़ता गया।
शोर पपिहा की मची है कोकिलों की धूम है-
ए महेन्दर भाग जागे चांद भी उलझा गया।
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