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<poem> सहते-सहते यारे सद्मा दिल में अरमां सो गया।
मलते-मलते अब कलेजे दर्द पैदा हो गया।

बातों-बातों में हमे तूने दी हजारों गालियाँ
चूँ न निकली मेरे मूँ से तेरा शिकवा हो गया।

चार दिन की चाँदनी है फिर अंधेरी रात है,
सवत के घर अब तो जाना तो सोहरा हो गया।

दिल महेन्दर टूटकर फिर कभी जुटता नहीं,
फूटी आँखें क्या करोगे होना था वो हो गया।
</poem>
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