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{{KKRachna
|रचनाकार=हरकीरत हकीर
}}
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<poem>पता नहीं कितने रिश्ते
बिखरे पड़े हैं मेरी देह में
फिर भी तलाश जारी है
इक ऐसे रिश्ते की
जो लापता है उस दिन से
जिस दिन से तूने बाँध दी थी डोर
इक नए रिश्ते से
और मैं बिछड़ गई थी
अपनी रूह से जुड़े
उस रिश्ते से …
ज़ख्मों की ताब झेलती
अभी तक मैं जिन्दा हूँ
उस रिश्ते की
तलाश में ….
</poem>
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}}
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<poem>पता नहीं कितने रिश्ते
बिखरे पड़े हैं मेरी देह में
फिर भी तलाश जारी है
इक ऐसे रिश्ते की
जो लापता है उस दिन से
जिस दिन से तूने बाँध दी थी डोर
इक नए रिश्ते से
और मैं बिछड़ गई थी
अपनी रूह से जुड़े
उस रिश्ते से …
ज़ख्मों की ताब झेलती
अभी तक मैं जिन्दा हूँ
उस रिश्ते की
तलाश में ….
</poem>