भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हरकीरत हकीर }} {{KKCatNazm}} <poem>वह मेरे जिस्...' के साथ नया पन्ना बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=हरकीरत हकीर
}}
{{KKCatNazm}}
<poem>वह मेरे जिस्म से खेला
होंठों को निचोड़ा
और छाती पर सर रख सो गया …
किसी को खबर भी न हुई
कब मेरी पलकों पर ठहरी हुई बूंदें
बर्फ में तब्दील हो गईं …
उस ने टांग ली थी
मेरे जिस्म की खूंटी से
अपनी दिन भर की थकान
पर मैं कैसे झाड़ू हुई
कैसे बर्तन बनी …
और कैसे फ्रिज बन उसका बिस्तर बनी
किसी को खबर भी न हुई …
लो मैंने बिछा दी है
तुम्हारे लिए अपनी देह
घर से लेकर आँगन तक
रसोई से लेकर बिस्तर तक
बंद कर अलमारी में
अपनी सारी इच्छाएं ….
</poem>
{{KKRachna
|रचनाकार=हरकीरत हकीर
}}
{{KKCatNazm}}
<poem>वह मेरे जिस्म से खेला
होंठों को निचोड़ा
और छाती पर सर रख सो गया …
किसी को खबर भी न हुई
कब मेरी पलकों पर ठहरी हुई बूंदें
बर्फ में तब्दील हो गईं …
उस ने टांग ली थी
मेरे जिस्म की खूंटी से
अपनी दिन भर की थकान
पर मैं कैसे झाड़ू हुई
कैसे बर्तन बनी …
और कैसे फ्रिज बन उसका बिस्तर बनी
किसी को खबर भी न हुई …
लो मैंने बिछा दी है
तुम्हारे लिए अपनी देह
घर से लेकर आँगन तक
रसोई से लेकर बिस्तर तक
बंद कर अलमारी में
अपनी सारी इच्छाएं ….
</poem>