भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बाट तेरी जोहती हूँ / मानोशी

1,458 bytes added, 01:43, 31 अक्टूबर 2013
'<poem>आज भी मैं बाट तेरी जोहती हूँ | रात जब तू खो गया था, ...' के साथ नया पन्ना बनाया
<poem>आज भी मैं
बाट तेरी जोहती हूँ |

रात जब तू खो गया था,
आँख से चुपचाप बह कर,
झर गया था एक अश्रु
मन का आर्तनाद बन कर |
पथ अभी भीगा हुआ है
फिर बुहारा नहीं आँगन,
राह अब भी देखती हूँ |
बाट तेरी जोहती हूँ |

सत्य ये जीवन मनोरम
हर इक पल है बहुत प्यारा,
कई छोटी-बड़ी खुशियों
से महकता बाग़ सारा,
पर कहीं कुछ छूटता है
रह गया है कुछ अधूरा,
उस अधूरी कल्पना में
नित नया रंग जोड़ती हूँ |
बाट तेरी जोहती हूँ|

था नही साकार पर तू
स्वप्न भी कोई नहीं था,
संग जीते हर इक पल में
अंग-अंग बँधा कहीं था.
तू फिरेगा फिर उसी मन
फिर सुहाना रूप धर कर,
है यही विश्वास, अब ले
बंद पलकें खोलती हूँ |
बाट तेरी जोहती हूँ |</poem>