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{{KKRachna
|रचनाकार=गंगासागर शर्मा
|संग्रह=
}}
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{{KKCatKavita}}
<poem>जद ई आवै
म्हारै मन में कोई
नवो विचार
तो वो
हाथोहाथ ई कविता में
बदळ जावै।
म्हारै खातर स्यात
सबद कोई मायनो कोनीं राखै।
म्हैं तो भाव/संवेदना रो पुजारी
फगत सबदां सूं सज्योड़ी कविता में
वा मौलिकता/सच्चाई कठै?
सबद चावै मिलै कै नीं मिलै
म्हारै कैवणै रो अरथ
पूगणो जरूरी है।</poem>
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म्हारै मन में कोई
नवो विचार
तो वो
हाथोहाथ ई कविता में
बदळ जावै।
म्हारै खातर स्यात
सबद कोई मायनो कोनीं राखै।
म्हैं तो भाव/संवेदना रो पुजारी
फगत सबदां सूं सज्योड़ी कविता में
वा मौलिकता/सच्चाई कठै?
सबद चावै मिलै कै नीं मिलै
म्हारै कैवणै रो अरथ
पूगणो जरूरी है।</poem>