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शब्द तुम कहो /कुमार सुरेश

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' == शब्द तुम कहो लिपि की तोड् दो कारा प्राचीरों की सी...' के साथ नया पन्ना बनाया

== शब्द तुम कहो

लिपि की तोड् दो कारा
प्राचीरों की सीमा मत मानो
शब्द एसा कुछ कहो
सब कुछ बदल जाये

प्रवेश करो प्रासादों में
कहो शासकों से
शासक भी होता है
केवल आदमी ही
और इतिहास के पन्नों पर
नाम लिख जाने से
खालिस आदमियत
नहीं बदल सकती ा

जिन आंखों केा प्रतीक्षा है
सुंदर दुनिया की
उनको समझाओ
वाणी वंचितों को
शब्द देना ही
वह तरीका है
जिससे बन सकती है
दुनिया बेहतर

जो धारण करते है तुम्हें
उन सबको भी बतलाओ
कि ब्रहमास्त्र का गलत आहवान
अनंत पीडा देता है
जैसी पीडा लेकर
भटकता है अश्वतथामा
आज भी चुपचाप

और उन मदारियों को
जो तुम्हे नचा कर
रोजी कमाना चाहते है
चेताओ
कि तुम संघर्ष के लिये
हथियार हो
आत्महत्या के लिये
औजार नहीं ा















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