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|रचनाकार=रमेश 'कँवल'
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}}
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<poem>
फूल को ख़ुशबू, सितारों को गगन हासिल हो
सुबह को शाम से मिलने की लगन हासिल हो
अनसुने क़िस्सों को बेखौ़फ़ कथन हासिल हो
ग़म के अहसास को ग़ज़लों का सुख़न हासिल हो
आप से मिल के मुझे ख़ुशियों का घर-बार मिले
आपके घर को भी लज़्ज़त का सहन हासिल हो
मेरी फ़ुरकत में उदास आप कभी हों कि न हों
मेरी आंखों को जुदार्इ में चुभन हासिल हो
मुझ को हासिल हो तेरी ख़ुशबू, तेरे साथ सफ़र
और तुझ को मेरी चाहत का चमन हासिल हो
तेरे दीदार की ठंडक मुझे गर्मी में मिले
सर्दियों में तेरे गालों की तपन हासिल हो
गुनगुनाता रहे रिमझिम के फुहारों में 'कंवल'
बारिशों में तेरा भीगा सा बदन हासिल हो
</poem>
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|संग्रह=
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फूल को ख़ुशबू, सितारों को गगन हासिल हो
सुबह को शाम से मिलने की लगन हासिल हो
अनसुने क़िस्सों को बेखौ़फ़ कथन हासिल हो
ग़म के अहसास को ग़ज़लों का सुख़न हासिल हो
आप से मिल के मुझे ख़ुशियों का घर-बार मिले
आपके घर को भी लज़्ज़त का सहन हासिल हो
मेरी फ़ुरकत में उदास आप कभी हों कि न हों
मेरी आंखों को जुदार्इ में चुभन हासिल हो
मुझ को हासिल हो तेरी ख़ुशबू, तेरे साथ सफ़र
और तुझ को मेरी चाहत का चमन हासिल हो
तेरे दीदार की ठंडक मुझे गर्मी में मिले
सर्दियों में तेरे गालों की तपन हासिल हो
गुनगुनाता रहे रिमझिम के फुहारों में 'कंवल'
बारिशों में तेरा भीगा सा बदन हासिल हो
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