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{{KKLokRachna|रचनाकार=ईसुरीईश्वरी प्रसाद
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{{KKLokGeetBhaashaSoochi|भाषा=बुन्देली}}<poem>
तुम खों छोड़न नहि विचारें
भरवौ लों अख्तयारें
जब ना हती, कछू कर घर की, रए गरे में डारें
अब को छोड़ें देत, प्रान में प्यारी भई हमारें
लगियो न भरमाए काऊ के, रैयो सुरत सम्भारें
ईसुर चाएँ तुमारे पीछें, घलें सीस तलवारें
</poem>
''' ====भावार्थ'''<br><br>====तुम्हें छोड़ने का मेरा कोई विचार नहीं है, चाहे मरना पड़ जाए । जाए। मैं तुम्हें तब से गले में डाले हुए हूँ, जब तुम जवान नहीं थीं और पुरुष के आनन्द की चीज़ नहीं थीं । थीं। अब तो तुम यौवन की मालकिन हो । हो। अब, भला, कैसे छोड़ूंगा तुम्हें । तुम्हें। अब तो तुम मेरे मन-प्राण में बसी हुई हो । हो। बस, अब तुम्हें कोई कितना भी भरमाए, उसके भरमाए में मत आना । आना। चाहें तुम्हारे पीछे तलवारें चल जाएँ और सिर कट जाएँ । जाएँ। लेकिन ईसुर को अब किसी बात की परवाह नहीं है ।है।
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