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|रचनाकार=गुलाब सिंह
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भूले बिसरे लिखते
सिलसिले तमाम
इस चिट्ठी को , जैसे-
तार बाँचना
बहना को की पालकी ओहार बाँचना,बापू की झुकी पकी हुई मूँछों मूछों का काँपनाअम्मा की आँखों की-हार बाँचना,
सुबह -शाम की लीकों
लिपटे भीतर-बाहर
हारे -मनमारे -सेसेहन-दालानबौरायीं आँगन के आम की टहनियाँचढ़ते फागुन केदिन चार बाँचनादालान।
बौराईं आँगन के-
आम की टहनियाँ
चढ़ते फागुन के दिन चार बाँचना,
गुमसुम बैठीं भाभी
टेक कर कुहनियाँ
कंधों पर उतरा अंधियार अँधियार बाँचना,
देखो जी !यह ख़त खत भी अनदेखा मत करना
घर भर का राम-राम
गाँव का सलाम !सलाम।
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