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Kavita Kosh से
चुप रहते, सहते हैं किसान ।।
नजराने देते पेट काट, कारिन्दे लेते लहू चाट,
दरबार बीऊच बीच कह चुके लाट, पर ठोंक-ठोंक अपना लिलाट,
रोते दुखड़ा अब भी किसान ।।
कितने ही बेढब सूदखोर, लेते हैं हड्डी तक चिंचोर,