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<poem>रक्त-बीज से पनप कर
कोमल पंखुड़ियों-सी खिलकर
सूरज को मुट्ठी में भर लेना
तुम क्रान्ति-बीज बन जाना !

नाजुक हथेलियों पर
अंगारों की लपटें दहकाकर
हिमालय को मन में भर लेना
तुम क्रान्ति-बीज बन जाना !

कोमल काँधे पर
काँटों की फसलें उगाकर
फूलों को दामन में भर लेना
तुम क्रान्ति-बीज बन जाना !

मन की सरहदों पर
संदेहों के बाड़ लगाकर
प्यार को सीने में भर लेना
तुम क्रान्ति-बीज बन जाना !

जीवन पथ पर
जब वार करे कोई अपना बनकर
नश्तर बन पलटवार कर देना
तुम क्रान्ति-बीज बन जाना !

अनुकम्पा की बात पर
भिड़ जाना इस अपमान पर
बन अभिमानी भले जीवन हार देना
तुम क्रान्ति-बीज बन जाना !

सिर्फ अपने दम पर
सपनों को पंख लगा कर
हर हार को जीत में बदल देना
तुम क्रान्ति-बीज बन जाना !

(जनवरी 7, 2013)</poem>
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